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रूही रुही मेरी रूही
इन् वादियों की कसम है इन् गेसुओं की कसम है
मेरे दिल में बसी है तू ही तू ही मेरी रूही
तू ही मेरी रूही इन् बादलों की कसम है
इन पर्वतों की कसम है हरसू नज़र आता है
मुझे तू ही तेरी रूही मुझे तू ही तेरी रूही
मिलके गले ज़मी अस्मा खोये है सपनों में दुर कहीं
ऐसा लगा पाके तुझे और मुझे कुछ पाना नहीं
छाया जैसे एक नशा बहकी बहकी है फिजा
हर सास तेरे प्यार से महकी महकी जैसे जुही
महकी महकी जैसे जुही
हूँ जनम तेरे लिए वे दो नयन मेरे दोनों जहाँ
कहने को है हम दो बदन एक है दिल और एक है जान
जब मैं आऊ तेरे पास बढ़ती जाये दिल की प्यास
तेरे रह मे सदा गाऊं खोई खोई बैठ दूँही
खोई लो बैठ बूँही
फ़रिरता हो तुम वा देवता
इंसा नज़र ऐसा आता नहीं
नज़र में भू कैसे ये रूह
जहानों में जो समाता नहीं
देल्ले अगर ये अदा राही भूले रास्ता
हर राह तेरे रंग से खिली खिली जैसे जूही
तू ही तू ही मेरी रूही
तू ही तू ही मेरी रूही
तू ही तू ही मेरी रूही
तू ही तू ही मेरी रूही
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